प्राथमिकी दर्ज चौथे स्तंभ पर हमला लोकतंत्र के लिए शर्मनाक

राजनीति के गलियारे पर भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रही हैं। यदुवंश पंजियार जैसे पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज कर जेल के सलाखों के पीछे धकेल देना पत्रकार पर प्राथमिकी  नहीं हैं।

प्राथमिकी दर्ज चौथे स्तंभ पर हमला लोकतंत्र के लिए शर्मनाक

राजनीति के गलियारे पर भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रही हैं। यदुवंश पंजियार जैसे पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज कर जेल के सलाखों के पीछे धकेल देना पत्रकार पर प्राथमिकी  नहीं हैं। बल्कि पत्रकारिता जगत,अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की हत्या हैं। यहाँ बताते चले कि सीतामढ़ी जिले में पुलिस द्वारा पत्रकार यदुबंश पंजियार पर काम में बाधा उत्पन्न करने का आरोप में उन्हें जेल के सलाखों के पीछे धकेल दिया गया।सोबरसा थाना में पत्रकार पर जो प्राथमिकी दर्ज हुई हैं, उसमें आरोप लगाया गया हैं कि ए एस पी प्रमोद कुमार द्वारा किए जा रहें अनुसंधान के दौरान पत्रकार वीडियो बना रहे थे।पत्रकार पर आरोप लगाया गया हैं कि उन्होंने पुलिस कर्मियों का कॉलर पकड़ा और अशब्द कहाँ। पत्रकारिता की दुनिया के लिए यह काले दिन हैं।जब बुलेट से कलम का कत्ल किया गया। जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरेआम खून किया जा रहा हैं।

यदुबंश पंजियार जैसी एक निर्भिक,ईमानदार,बेवाक कलम के सिपाही पत्रकार की बेरहमी से झूठे आरोप लगाकर खुलेआम जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। आखिर इस तरह हम कब तक केवल निन्दा और अफसोस करते रहेंगे। यह प्राथमिकीऔर मारने की धमकी न थमने वाला सिलसिला आखिर कब थमेगा ? कई खुलासों के बैंक तैयार करने वाले पत्रकार आम तौर पर सबूत जुटाने में कई लोंगो के निशाने पर हो जाते हैं।

निशाना तब तक नहीं चूकता हैं, जब तक इन निशाने बाजों के हाथ कानून और व्यवस्था की पकड़ से ढीले नहीं किए जाते।यह वह कोण हैं जिसमें राजनीति गंदगी दिखाई पड़ती हैं। भारत में पत्रकारों को सबसे ज्यादा खतरा नेताओं से हैं।पिछले पच्चीस सालों में सबसे ज्यादा उन पत्रकारों की हत्या हुई जो राजनीति विट कवर करते थे। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले पच्चीस सालों में जिन पत्रकारों की हत्या हुई हैं, उनमें 47 फीसदी राजनीति और 21 फीसदी बिजनेस कवर करते थे। ये आंकड़े साबित करते है कि देश में पत्रकारों के खिलाफ नेताओं और उधोगपतियों के अलावे धर्म के ठेकेदार का एक गगठजोड काम कर रहा हैं।पत्रकारों का हर वह शख्त दुश्मन होता हैं जिनके हाथ काले कारोबार से सने होते हैं।नेता,पदाधिकारी, माफिया,उग्रवादी,आतंकवादी,धर्म के ठेकेदार सभी के लिए पत्रकार आँख की किरकिरी बना रहता हैं। पत्रकार सुरक्षा कानून एक मात्र हथियार हैं, जिससे कलम के सिपाहियों की रक्षा हो सकती हैं।पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने के लिए हमें कोई ठोस कदम उठाने चाहिए।यह हमारे वजूद और अस्तित्व की लड़ाई हैं। चौथा स्तम्भ के वजूद को बचाने के लिए हम सभी पहल करें।

दूसरी ओर कोई भी कानून क्यों नहीं आ जाय जब तक हम सभी पत्रकार एक नहीं होंगे,तब तक कुछ नहीं हो सकता। कल किसी पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज हुई तथा उन्हें धमकियां मिली। आज यदुबंश पंजियार जैसी जांबाज, निर्भिक,ईमानदार,बेवाक पत्रकार की खुलेआम झूठे आरोप लगाकर मुकदमें में फसाया गया। कल किसी और का नंबर आएगा। यह सिलसिला शायद चलता ही रहेगा।कोई कुछ नहीं कर सकता।शायद हम मूकदर्शक बनकर यह सब सिर्फ और सिर्फ तमासा देखते ही रहेंगे। इस तरह अभिव्यक्ति की आज़ादी, कलम के सिपाहियों पत्रकार की खुलेआम मुकदमें में फसाकर लोकतंत्र को गला घोंट-घोंटकर मार दिया जाएगा।कोई कुछ नहीं कर सकता।हम सिर्फ तमाशा देखते ही रहेंगे।