कोरोना काल में पुलिसियां जुर्म और चुनाव
भारत में राजनीति सिर्फ दो बंदरों के बीच चुनाव तक सिमट कर रह गई हैं।राजनीति अब युद्ध और दंगों पर चलने लगी हैं और अशांति उसका मुख्य हथियार बन गया हैं। कोरोना भी जानता हैं कि लोकतंत्र में चुनाव कितने जरूरी होते हैं।

भारत में राजनीति सिर्फ दो बंदरों के बीच चुनाव तक सिमट कर रह गई हैं।राजनीति अब युद्ध और दंगों पर चलने लगी हैं और अशांति उसका मुख्य हथियार बन गया हैं। कोरोना भी जानता हैं कि लोकतंत्र में चुनाव कितने जरूरी होते हैं। इसलिए उसने तय किया हैं कि वो पांच लाख लोंगो की चुनावी रैली में नहीं फैलेगा लेकिन दो सौ लोंगो के कोई भी कार्यक्रम में तबाही मचा देगा। चुनावी महासभा,रोड़ शो एवं रैलियों में कोरोना क्यों नहीं फैलता वहीं मिलन समारोह, पूजा कार्यक्रमों एवं रेलवे,बस स्टैंड में तेजी से फैलता हैं।यह मेरी समझ में नहीं आ रहा हैं। जिस तरह सरकार लोंगो को मौत के मुंह में धकेल रहीं हैं यह चिन्ता का विषय हैं। इस देश में सिर्फ एक साल चुनाव टाल दिया जाता तो यह कोरोना का विकराल रूप हमें देखने को नहीं मिलता।भगवान के द्वार मंदिरों को भी बन्द कर दिया गया।शिक्षा का मंदिर स्कूल-कॉलेजों को भी बन्द कर दिया गया।सार्वजनिक स्थानों ,पर्यटक क्षेत्र सहित अधिकांश ट्रेनों और बसों को भी बन्द कर दिया गया। यहाँ तक कि गरीब,मजदूर,किसान छोटे व्यापारी भाइयों और बेरोजगारों को सड़कों पर मरने के लिए अकेला छोड़ दिया गया।लेकिन लाखों लोगों के बीच में चुनाव प्रचार-प्रसार चालू रहा। दुर्भाग्य हैं इस देश का कि भारत के भ्रष्ट और गलत नीतियों वाले नेताओं ने इस देश की जनताओं को कोरोना की आग में दूसरी बार धकेल दिया। आज भारत के गन्दे नेताओं ने चुनाव में अपनी रोटी सेकने के लिए चुनाव प्रचार करते पाएं गए।जिनके वजह से लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ो लोग कोरोना पीड़ित हो रहें हैं।दूसरी ओर सुपर शाही स्नान कुम्भ हैं जो हरिद्वार में अनवरत जारी रहा।सरकार चाहती तो उस भीड़ को कम कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।क्योंकि उन्हें सिर्फ संत और साधुओं की वोट चाहिए। पंजाब, आसाम, पांडिचेरी, केरल ,तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल के विधानसभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव को सरकार एक साल के लिए टाल देती तो आज गरीब लोग नहीं मरते।क्योंकि चुनावी राज्यों से हर किसी का कोई सगा-संबंधी या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। देश के ताकतवर राजनेताओं के संरक्षण में ही पुलिसियां जुर्म जो मास्क न लगाने को लेकर हो रहें हैं। इसके साथ हो रहीं जबरदस्त हाथापाई के वीडियों भी सोशल मीडिया पर कई राज्यों से जमकर वायरल हो रहीं हैं। खतरनाक अपराधी की तरह मास्क न लगाने वाले को पुलिस सड़क पर पीटते नज़र आते हैं।यह सरकार और प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता हैं कि आखिर किस कानून व संविधान के तहत इंसानों से जानवरों जैसा शर्मनाक व्यवहार किया जा रहा हैं। भीड़ के रूप में चंद मजबूर लोग से लेकर लाखों की संख्या में गैर जरूरी चुनावी रैलियों में लोग इकट्ठा होते रहे हैं।
चुनावी राज्यों में सरकार कोरोना गाइड लाइन का पालन करने की अनुमति शायद नहीं देती क्यों ?
पांच-छह राज्यों में विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में कोरोना का गाइड लाइन को क्यों नहीं सख्ती से लागू किया गया ?
लगता हैं कि कोरोना से बचाव के नियमों का पालन न करने वाले ताकतवर राजनेताओं के आगे चुनाव आयोग और देश का सिस्टम एकदम मौन धारण कर लिया हैं।कोरोना महामारी की दूसरी लहर की मार को कम करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता हैं।इसके लिए अब आम जनता को ही कुछ करना चाहिए। लेखक - स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं चैनलों में अपनी योगदान दे रहें हैं।
लेखक एवं पत्रकार - प्रदीप कुमार नायक
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